वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन प्रभाग |
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रासायनिक पीड़कनाशियों के अंधाधुंध उपयोग के कारण पर्यायवरण दूषित, प्रतिरोधक, पीड़कों के पुर्नरूत्थान होने से व्यापक प्रभाव पड़ रहा है एवं इसका असर खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ रहा है । सतत् कृषि, खाद्य सुरक्षा एवं कृषि आधारित उद्योग एवं अर्थव्यवस्था के लिए वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन महत्वपूर्ण है । |
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वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन, एनआईपीएचएम कृषकों का ज्ञान बढ़ाने के लिए वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन रणनीतियों के विभिन्न पहलूओं पर उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर कुशल प्रशिक्षकों का दल तैयार कर रहा है । रासायनिक पीड़कनाशियों के अत्यधिक इस्तेमाल एवं इसकी विश्वसनीयता में कमी लाने तथा पर्यायवरणीय सतत् वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए कृषि विस्तार कार्यकर्ताओं को पीड़क प्रबंधन हेतु पारिस्थितिकीय अभियांत्रिकी के संयोजन से वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन आधारित एईएसए प्रशिक्षण दिया जाना जरूरी है । मृदा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जैवउर्वरकों का सम्मिश्रण करना, विशेषकर माइकोरिजा कृषि प्रणाली में काफी अहम भूमिका निभाती है एवं फसलों के वृहत् एवं सूक्षम पोषण के महत्व को समझने में सहायक है । पैरासिटॉयड, प्रिडेटर्स एवं सूक्ष्मजीवों के जरिए जैविक नियंत्रण पीड़कों के सामूहिक प्रबंधन एवं रोगों सहित अजैविक कारकों के लिए एक महत्वपूर्ण घटक का गठन करता है । संपूरकता एवं संभवत: पीड़क प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकीय अभियांत्रिकी के संयोजन सहित कार्यान्वित वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन आधारित एईएसए के समन्वित लाभों को देखते हुए इस अवधारणा को लोकप्रिय बनाया जा रहा है एवं कुशल प्रशिक्षकों का दल तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध है, उनसे उम्मीद की जाती हैं कि वे किसानों के बीच पीड़क प्रबंधन के लिए पारिस्थितिकीय अभियांत्रिकी के संयोजन सहित वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन आधारित एईएसए प्रणाली को लोकप्रिय बनाएंगे । |
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I. क्षमता निर्माण कार्यक्रम 1. पीड़क प्रबंधन हेतु कृषि पारिस्थितिक विश्लेषण आधारित वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन एवं पारिस्थितिकीय अभियांत्रिकी |
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कृषि पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण किसानों के लिए पारिस्थितिक-तंत्र के जैविक एवं अजैविक अवयवों के जटिलताओं एवं आंतरिक निर्भरता के सम्बन्ध एवं किसानों द्वारों लिये गये निर्णयों के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाने का एक प्रायोगिक शिक्षण है । चावल फसल में सतत् पीड़क प्रबंधन की महत्ता को ध्यान में रखते हुए एनआईपीएचएम ने फसल विशिष्ट पर चावल एवं सब्जियों से संबंधित पीड़क प्रबंधन हेतु एईएसए आधारित पीएचएम में पारिस्थितिक अभियांत्रिकी के संयोजन से दीर्घ प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । |
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2. फसल विशिष्ट एईएसए-चावल |
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इस कार्यक्रम के अन्तर्गत् प्रशिक्षार्थी पारिस्थितिक पहलुओं, चावल गहन प्रणाली (एसआरआई), संशोधित एसआरआई, बुवाई हेतु ड्रम सीडर इस्तेमाल करने आदि सहित विभिन्न प्रबंधन अभ्यासों से चावल फसल के उगाने की प्रक्रियाओं एवं संबंधित विधियों का अपने हस्तकार्यों से निष्पादित कर अनुभव प्राप्त करते हैं। प्रतिभागियों को खेत स्तर पर उत्पादन किये जाने वाले जैवनियंत्रण एजेंटों जैसे : ब्रेकॉन एसपीपी, स्पाइडर, रेडवीड बग, ट्राइकोग्रमा एसपीपी, ट्राइकोड्रमा एसपीपी, सूडोमोनॉस एसपीपी, एन्टोमोपाथोजेनिक कवक, एन्टोमोपाथोजेनिक नेमटोडस(इपीएन) आदि मुहैया करवाये जाते हैं । प्रतिभागियों को पीड़क प्रबंधन हेतु एफएफएस प्रणाली एकीकृत मृदा पोषक-तत्व एवं खरतपतवार प्रबंधन, जड़क्षेत्र अभियांत्रिकी एवं पारिस्थितिकीय अभियांत्रिकी विषयों पर प्रशिक्षण दिये जाते हैं । |
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प्रतिभागी क्षतिपूर्ति योग्यता, पीड़क एवं डिफेंडर (पी:डी) अनुपात, कीड़ों की जैवविधिता एवं सिस्टेमिक कीटनाशक की कार्य करने की तरीकों पर अध्ययन करने के लिए के विभिन्न लघु अवधि आधारित प्रयोगों का संचालन करता है। पीड़क प्रबंधन हेतु पारिस्थितिक अभियांत्रिकी के कारण बंड पर सूर्यमुखी, काउपी, ओकरा, प्याज, मकई एवं मैरीगोल्ड होने पर प्रतिभागियों द्वारा लेडीबर्ड, बीटल, स्पाइडर, कीड़े, सिर्पिड मक्खियों आदि का प्राय: निरीक्षण किया जाता है । इसके अलावा, वे ड्रम सीडर के ऊपर एसआरआई एवं एमएसआरआई के लाभों एवं मौजूदा अभ्यासों के बारे में भी निरीक्षण किये । |
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3. फसल विशिष्ट एईएसए-सब्जियां |
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‘सब्जियों में फसल विशिष्ट एईएसए’ विषय पर 30 दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिसमें प्रतिभागियों को जैवनियंत्रण अपने हस्त अभ्यासों से जैविनियंत्रण एजेंटों एवं माइक्रोबिअल पीड़कनाशियों के खेत स्तर पर उत्पादन करने हेतु प्रशिक्षण दिये जाते हैं । प्रतिभागियों को प्रथम सात दिनों की अवधि के दौरान एईएसए के सिद्धांतों, विभिन्न फसलों में पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी, सजीव मृदा अवधारणा, जड़क्षेत्र अभियांत्रिकी, आईएनएम, आईडब्ल्यूएम, खरपतवार प्रबंधन उपकरण में विशेषज्ञता एवं तृणनाशियों के सुरक्षित उपयोग करते हेतु प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं। प्रतिभागियों को जैविक नियंत्रण, जैवगहन आईपीएम, विभिन्न कृषि/बागवानी फसल पारिस्थितिक-तंत्रों में कीट पीड़कों एवं डिफेंडरों की पहचान करने, एकीकृत कृंतक प्रबंधन, एफएफएस विधि एवं पीड़कनाशी अनुप्रयोग तकनीकों के सिद्धांतों के बारे में भी प्रशिक्षण दिये जाते हैं । प्रतिभागियों को उन किसानों के खेतों का दौरा करवा जाता है, जिन्होंने पीड़क प्रबंधन हेतु एईएसए की अवधारणा एवं पारिस्थितिक अभियांत्रिकी का अपनाये हैं । |
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4. पीड़क प्रबंधन हेतु कृषि-पारिस्थितिक-तंत्र विश्लेषण (एईएसए) एवं पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी (ईई): |
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प्रतिभागियों को पीड़क प्रबंधन हेतु पारिस्थितिकी अभियांत्रि (ईई) की के संयोजन से पीएचएम आधारित एईएसए के सिद्धांतों के बारे में बतलाया जाता है । पीड़क प्रबंधन हेतु पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी में जैविक नियंत्रण के संर्वद्धन के लिए पारंपरिक तकनीकों के प्रति विश्वास दिलाता है । प्रतिभागियों को जैवनियंत्रण एजेंटों के खेत स्तर पर उत्पादन करने के लिए भी प्रशिक्षण दिये जाते हैं । |
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5. एकीकृत मृदा, पोषक-तत्व एवं राइजोस्फीयर प्रबंधन (आईएसएनआरएम) |
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कीकृत पोषक-तत्व प्रबंधन (आईएनएम) जैविक, खनिज एवं जैव-ऊवरक संसाधनों के समन्वित एवं संतुलित इस्तेमाल के जरिए फसल प्रबंधन में मृदा ऊर्वरक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान विभन्न फसलों में एईएसए के सिद्धांतों, पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी, सजीव मृदा अवधारणा, राइजोस्फिअर इंजीनियरिंग, आईएनएम एवं आईडब्ल्यूएम के बारे में प्रशिक्षण दिये जाते हैं । इसके अलावा, खरपतवार प्रबंधन उपकरण, हर्बिसाइडों के सुरक्षित इस्तेमाल एवं खरपतवार प्रबंधन अभ्यासों से जुड़े समस्याओं के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं । इसके अलावा, टिकाऊ खेती के लिए एकीकृत पोषक प्रबंधन, विभिन्न फसलों के लिए मृदा परीक्षण आधारित पोषक तत्व प्रबंधन, मृदा उर्वरता प्रबंधन में जैव प्रौद्योगिकी, पादप स्वास्थ्य प्रबंधन एवं कृषि रसायनों के प्रभाव के लिए राइजोस्फीयर इंजीनियरिंग, मिट्टी के जैविक गुण आदि के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं । |
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6. जैवनियंत्रण एजेंटों का उत्पादन एवं माइक्रोबिअल जैवपीड़कनाशियों का गुणवत्ता निर्धारण एवं गुणवत्ता प्रबंधन |
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कम पारिस्थितिक प्रभाव के साथ सतत् उच्च उत्पादन बनाये रखने के लिए प्राकृतिक शत्रुओं एवं जैवपीड़कनाशियों का उपयोग एक वैकल्पिक है । कई कीट पैरासिटॉयड् प्रेडेटर्स नुकसानदायक कीटों को मारने में सक्षम होते हैं या उनके प्रभाव को कम कर देते हैं । उसी तरह, विभिन्न मृदा जनित कवक एवं बैक्टीरिआ माइक्रोजीवों एवं कीट-पीड़कों, पौधों के जड़ों में बसने वाले कीटाणुओं को मार देते हैं या इनसे होने वाले रोगों में कमी लाते हैं । जैवनियंत्रण एजेंटों के समूह स्तर पर उत्पादन करने के लिए कई प्रौद्योगिकियां विकसित किये गये हैं एवं इन प्रौद्योगिकियों को प्रचार-प्रसार किये जाने की जरूरत है । पीड़क प्रबंधन में जैवनियंत्रण एजेंटों के महत्व को देखते हुए एवं गुणवत्ता जैवपीड़कनाशियों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए एनआईपीएचम ने क्षमता निर्माण कार्यक्रम के तहत् ‘जैवएजेंटों के उत्पादन प्रॉटोकाल एवं माइक्रोबिअल जैवपीड़कनाशियों के गुणवत्ता निर्धारण एवं गुणवत्ता प्रबंधन’ संबंधी विषयों पर 21 दिनों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की । एनआईपीएचएम लघु पाठ्यक्रमों जैसे : जैवनियंत्रण एजेंटों एवं जैवपीड़कनाशियों के लिए उत्पादन प्रोटोकाल पर (11 दिनों के लिए) एवं माइक्रोबिअल जैवपीड़कनाशियों के गुणवत्ता निर्धारण एवं गुणवत्ता प्रबंधन पर (5 दिनों के लिए) भी प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है । |
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7. जैवनियंत्रण एजेंटों एवं जैवपीड़कनाशी हेतु उत्पादन प्रोटोकाल |
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एनआईपीएचएम में जैवनियंत्रण एजेंटों एवं जैवपीड़कनाशी हेतु उत्पादन प्रोटोकाल पर 5 दिनसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है । प्रशिक्षणार्थियों को विभिन्न पैरासिटॉयड्, प्रेडेटरों, माइक्रोबिअल जैवपीड़कनाशियों, माइक्रोबिअल जैवपीड़कनाशियों एवं इंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमियों (ईपीएन) के समूह स्तर पर हस्त प्रक्रिया से उत्पादन कर अनुभव प्राप्त करने हेतु प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं । विभिन्न कौशलों जैसे : एनपीवी, ट्राइकोग्रमा, ट्राइकोड्रमा के समूह स्तर पर उत्पादन करने, पपीता मीलीबग एवं इसके परजीवी, एसेरोफैगस पपीता; नीम के बीज निचोड़ (एनएसकेई); ट्राइकोडर्मा एसपीपी, मेटारिज़ियम एसपी, ब्यूवेरिया एसपी, वर्टिसिलम एसपी, नोमुरिया एसपी, पेसिलोमाइसिस एसपी, स्यूडोमोनास एसपी, बेसिलस एसपीपी, आदि का बड़े पैमाने पर उत्पादन करना; जैवपीड़कनाशियों के लिए मदर कल्चर तैयार करने, ईपीएन के विलगाव एवं समूह मल्टीप्लीकेशन एवं जैवसूत्र निर्माण के विकास हेतु तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण दिये जाते हैं । |
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8. जैवपीड़कनाशियों के गुणवत्ता निर्धारण एवं गुणवत्ता प्रबंधन |
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पीड़कों को सफलतापूर्वक जैविक नियंत्रण के लिए जैवनियंत्रण एजेंटों एवं जैवपीड़कनाशियों का इस्तेमाल मुख्य तौर पर इसके गुणवत्ता एवं समय पर किये उपयोग पर निर्भर करता है। इसके लिए क्षमता निर्माण एवं जैवपीड़कनाशियों में गुणवत्ता निर्धारण गुणवत्ता प्रबंधन की जरूरत है । प्रशिक्षणार्थियों को अपने हाथों से अभ्यास के जरिए हेलिकोर्वापा अरमिगेरा, न्यूक्लियर पोलीहेड्रोसिस वायरस (एचएएनपीवी), ट्राइकोड्रमा, सुडोमनास, इंटोमोपैथोजेनिक कवक आदि के परीक्षण के तौर पर गुणवत्ता मानकों के गुणवत्ता विश्लेषण पर प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं । |
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9. जैव उर्वरक के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल |
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एनआईपीएचएम जैव उर्वरक उत्पादन प्रोटोकॉल के लिए 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है । यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जैव उर्वरकों के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करता है जैसे कि सजीव मृदा की अवधारणा, मिट्टी के सूक्ष्मजीवों द्वारा जड़ उपनिवेशण का अध्ययन करने की तकनीक, मिट्टी एवं पौधों के स्वास्थ्य प्रबंधन में जैव उर्वरक की भूमिका, एफसीओ 1985 के अनुसार जैव उर्वरक उत्पादन इकाई की स्थापना के लिए प्रोटोकॉल पर प्रायोगिक सत्रों पर प्रशिक्षण की सुविधा, जैव उर्वरक उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले माइक्रोबियल आइसोलेट्स का शुद्धिकरण, माइकोराइजा पृथक्रकरण एवं पहचान, जैव उर्वरक उत्पादन में उपयोग किए जाने वाले माइक्रोबियल आइसोलेट्स का लक्षण वर्णन, और सरकारी एवं निजी प्रयोगशालाओं में जैव उर्वरक उत्पादन प्रयोगशालाओं का दौरा, जैव उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण एवं कम लागत वाली जैव उर्वरकों के ऑन-फार्म उत्पादन जैसी कम लागत एनआईपीएचएम प्रौद्योगिकी पर प्रदर्शन किया जाता है । |
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10. माइक्रोबियल जैव पीड़कनाशियों के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल |
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एनआईपीएचएम माइक्रोबियल जैव पीड़कनाशियों के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन करता है । यह प्रशिक्षण कार्यक्रम माइक्रोबियल जैव पीड़कनाशी जैसे उत्पादन प्रोटोकॉल के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करता है । यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पीड़कनाशी अधिनियम, 1968 के तहत पंजीकृत जैव पीड़कनाशियों के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करता है, जिसमें कवक एवं बैक्टीरिया की शुद्ध कल्चर तैयारी और रखरखाव एवं एनपीवी, ट्राइकोडर्मा विरिडे, स्यूडोमोनास एसपीपी जैसे जैव पीड़कनाशियों के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल और सूत्रीकरण के बारे में बताया गया है । एंटोमोपैथोजेनिक कवक, आदि माइक्रोबियल जैव पीड़कनाशी प्रयोगशाला की स्थापना, आईएसओ-17025 के अनुसार मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता है । वनस्पति रोगजनक के जैव नियंत्रण एवं ट्राइकोडर्मा पृथक्रकरण, पहचान एवं उत्पादन पर अवधारणाएं है । एनआईपीएचएम कम लागत उत्पादन विधियों का उपयोग करके ट्राइकोडेरामा, स्यूडोमोनास एवं ईपीएफ कवक जैसे माइक्रोबियल जैव पीड़कनाशियों के उत्पादन पर प्रशिक्षण देता है । |
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11. पीएचएम के लिए अच्छे कृषि पद्धतियां |
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वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए एनआईपीएचएम अच्छे कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दे रहा है । इसके लिए पीएचएम प्रभाग अच्छे कृषि पद्धतियां पर भारत को ज्ञान प्रदान करने जीएपी-बीआईएस का परिचय, एईएसए आधारित पीएचएम का परिचय एवं पारिस्थितिक इंजीनियरिंग पीड़क प्रबंधन, बायोप्रिमिंग, मृदा परीक्षण आधारित आईएनएम, कल्चर अभ्यास, स्वच्छता, फाइटोसैनिटरी, जीएपी के संबंध में खाद्य सुरक्षा मुद्दे, पीड़कनाशी के उपयोग एवं भंडारण तकनीक, फार्म गुणन और जैविक नियंत्रण एजेंटों के अनुप्रयोग पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन कर रहा है । |
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12. एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड के लिए उत्पादन प्रोटोकॉल |
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एनआईपीएचएम "एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड उत्पादन प्रोटोकॉल" के विभिन्न पहलुएं जैसे जैविक नियंत्रण-सिद्धांत एंव अवधारणाओं का परिचय, मेजबान पीड़क के ऑन-फार्म उत्पादन, कोर्सीरा सेफेलोनिका और वैक्स मोथ, एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड का परिचय, पीड़क प्रबंधन हेतु सबसे अच्छे उपकरण के रूप में एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड, ऑन-फार्म उत्पादन के रूप में एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड, एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड का सूत्रीकरण, एंटोमो रोगजनक नेमाटोड की रचनात्मक एवं आणविक पहचान, मृदा पीड़कों के पीड़क प्रबंधन के लिए ईपीएन उपयोग के सफलता की कहानियां, ईपीएन के इस्तेमाल के तरीके जैसे पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करने के लिए 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता है । |
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13. क्षेत्र निदान और पादप परजीवी सूत्रकृमि का प्रबंधन |
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एनआईपीएचएम "पादप परजीवी सूत्रकृमि के क्षेत्र(फील्ड) निदान एवं प्रबंधन" जो पादप परजीवी सूत्रकृमि के क्षेत्र निदान एवं प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर क्षेत्र स्तरीय ज्ञान प्रदान करना, जैसे कि भारत में पादप परजीवी सूत्रकृमि समस्याओं की वर्तमान स्थिति, भारत में संगरोध महत्व के पादप परजीवी सूत्रकृमि, ट्राइकोडर्मा का कृषि उत्पादन, नेमाटोड के जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास, पैसिलोमाइसेस लिलासीनस, एंटोमोपैथोजेनिक नेमाटोड का परिचय, पौधे परजीवी नेमाटोड की पहचान पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता है । पादप परजीवी सूत्रकृमि के व्यावहारिक मुद्दों, बागवानी फसलों में सूत्रकृमि कि समस्याएं, पॉलीहाउस में सूत्रकृमि प्रबंधन एवं पादप परजीवी सूत्रकृमि का नमूनाकरण और निष्कर्षण पर प्रदर्शन दिया जाता है । |
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14. संगरोध सूत्रकृमि के आर्थिक महत्व |
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एनआईपीएचएम "संगरोध सूत्रकृमि के आर्थिक महत्व" पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता है जो भारत में पादप परजीवी सूत्रकृमि समस्याओं की वर्तमान स्थिति के विभिन्न पहलुओं पर ज्ञान प्रदान करने के लिए, भारत में संगरोध महत्व के पादप परजीवी सूत्रकृमि, कृषि वस्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सूत्रकृमि, एंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमि का परिचय, पादप संगरोध सूत्रकृमि की पहचान, पादप परजीवी सूत्रकृमि के व्यावहारिक मुद्दों पर चर्चा, बागवानी फसलों में सूत्रकृमि की समस्या, पॉलीहाउस में सूत्रकृमि प्रबंधन एवं पादप परजीवी सूत्रकृमि का नमूनाकरण और निष्कर्षण पर प्रदर्शन दिया जाता है ।. |
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15. संरक्षित खेती में वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन (पॉलीहाउस) |
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एनआईपीएचएम ने विभिन्न सब्जियों एवं फूलों के पौधों की खेती में पॉलीहाउस रोग एवं पीड़क प्रबंधन (संरक्षित खेती) के प्रदर्शन हेतु, संरक्षित खेती कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए पॉलीहाउस का निर्माण किया है । इसके तहत पीएचएम प्रभाग संरक्षित खेती में जैविक पीड़क प्रबंधन के बारे में ज्ञान प्रदान करता है जैसे कि संरक्षित खेती में परजीवी की भूमिका, सुरक्षात्मक खेती में ईपीएफ एवं एनपीवी की भूमिका, सुरक्षात्मक खेती में परभक्षी पीड़को की भूमिका, पॉलीहाउस स्थिति में ईपीएन की भूमिका, पॉलीहाउस की खेती में जैव उर्वरकों का उपयोग और अधिक मूल्य वाले फूल और सब्जियों की संरक्षित खेती, सुरक्षात्मक खेती में अच्छी कृषि पद्धतियां एवं सूत्रकृमि प्रबंधन, ग्रीन हाउस में सब्जी फसलों का एकीकृत रोग प्रबंधन, संरक्षित खेती में आईपीएम पर वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता है । |
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16. वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन में जैविक कृषि पर सर्टिफिकेट कोर्स |
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जैविक कृषि को बढ़ावा देने में लगे किसानों एवं व्यवसाय-संबंधियों को क्षमता निर्माण की आवश्यकता है । किसान जैविक कृषि को अपनाकर सुरक्षित खाद्य का उत्पादन कर सकते हैं और स्थानीय बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं । इससे कृषि उत्पादों के निर्यात में भी आसानी होगी । इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, एनआईपीएचएम 'जैविक कृषि में वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन' पर एक सर्टिफिकेट कोर्स का आयोजन करता है । |
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II. विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम: |
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1. प्रेरण प्रशिक्षण कार्यक्रम |
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एनआईपीएचएम विभिन्न राज्य कृषि एवं बागवानी विभाग और डीपीपीक्यूएस कर्मचारियों के नए नियुक्त कर्मचारियों को 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पीएचएम प्रभाग विभिन्न क्षेत्र स्तरीय पीड़क और रोग निदान, उपचारात्मक उपाय, एईएसए और पारिस्थितिक इंजीनियरिंग आधारित पीड़क प्रबंधन रणनीतियों, जैविक नियंत्रण का परिचय, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन प्रथाओं, आईएनएम और खरपतवार प्रबंधन, जैव नियंत्रण एजेंट, जैव पीड़कनाशी और जैव उर्वरक, के उत्पादन पर प्रशिक्षण प्रदान करता है। |
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2. जैविक खाद उत्पादक पर कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम |
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राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (एनएसडीएम) के तहत जैविक खाद उत्पादक पर कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने हेतु एनआईपीएचएम को भारतीय कृषि कौशल क्षेत्र परिषद (एएससीआई) से मान्यता प्राप्त है । कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण समुदाय के लोगों को रोजगार के अवसर / स्वरोजगार पैदा करना / अपना व्यवसाय शुरू करने हेतु जैविक फसल संरक्षण तकनीकों को अपनाते हुए नए तकनीकों को अपनाना है । |
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III. किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम |
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जैवनियंत्रण एजेंटों एवं जैवपीड़कनाशी पर कृषि उत्पादन |
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एनआईपीएचएम ने कृषि स्तर पर जैवनियंत्रण एजेंटों एवं माइक्रोबियल जैव पीड़कनाशी के बड़े पैमाने पर उत्पादन हेतु उपलब्ध कम लागत वाले इनपुट के साथ सरल कार्यप्रणाली विकसित की है । यह राज्य एवं केंद्र सरकार के विस्तार अधिकारियों के लिए 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है । |
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IV. केंद्र, राज्य सरकार के संगठनों एवं अन्य के साथ सहयोग |
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1. कृषि विभाग, महाराष्ट्र सरकार के साथ सहयोग |
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एनआईपीएचएम द्वारा क्रॉप्सेप परियोजना के तहत् महाराष्ट्र राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों के लिए वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन हेतु कृषि पारिस्थितिक-तंत्र विश्लेषण एवं पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी के सिद्धांतों’ से संबंधित विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । |
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2. जलवायु लचीला कृषि (पीओसीआरए) पर महाराष्ट्र परियोजना के साथ सहयोग |
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भारत में समृद्धि, गरीबी में कमी का समर्थन करने हेतु महाराष्ट्र सरकार विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित प्रोजेक्ट ऑन जलवायु लचीला कृषि (पीओसीआरए) को लागू करती है । यह परियोजना ग्रामीण विकास, नई कृषि प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रसार, जलवायु-लचीला कृषि, छोटे बड़े किसानों को बाजार से जुड़ना एवं बेहतर जल और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देती है । |
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3. तंबाकू बोर्ड, भारत सरकार के साथ सहयोग |
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तंबाकू फसल पारिस्थितिक-तंत्र में पीड़कों के जैवगहन प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए एनआईपीएचएम ने तंबाकू बोर्ड के साथ कारार किया गया है । आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों के तंबाकू अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं । प्रतिभागियों को विशेष कौशलों एवं मूल सिद्धांतों तथा पीड़क प्रबंधन हेतु पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी के बारे में हस्त प्रक्रियाओं के जरिये अभ्यास कराया जाता है । |
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4. आईसीएआर के केवीके, एसएयू एवं गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग |
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केवीके केन्द्रों के मास्टर प्रशिक्षकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजन करने के अलावा, एनआईपीएचएम पीड़क प्रबंधन हेतु पारिस्थितिकी अभियांत्रिकी के संयोजन से एईएसए आधारित पीएचएम को बढ़ावा देता है । एनआईपीएचएम ने गैर-सरकारी संगठनों के तहत् कार्यरत् कार्यकर्ताओं सहित केवीके के सहयोग से कई पहल किये हैं । |
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5. भारतीय बागवानी संस्थान (आईआईएचआर) के साथ समझौता ज्ञापन |
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दिनांक 28.06.2019 को प्रदर्शन एवं क्षमता निर्माण के लिए बागवानी फसलों में वनस्पति स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी पर आईआईएचआर के साथ समझौता ज्ञापन किया गया । |
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6. श्री कोंडा लक्ष्मण बागवानी विश्वविद्यालय, तेलंगाना राज्य (एसकेएलटीएसएचयू) के साथ समझौता ज्ञापन |
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दिनांक 23.06.2021 को एनआईपीएचएम एवं एसकेएलटीएसएचयू के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया गया । समझौता ज्ञापन का उद्देश्य वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन, कार्यशालाओं / संगोष्ठियों / सम्मेलनों में भाग लेना, स्नातक एवं स्नातकोत्तर के प्रशिक्षण छात्रों को ज्ञान प्रदान करना है । एनआईपीएचएम-एसकेएलटीएसएचयू सहयोग जैव नियंत्रण एजेंटों के कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने एवं बागवानी फसलों और संरक्षित खेती में मदद करेगा । |
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7. भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि पीड़क संसाधन ब्यूरो के साथ समझौता ज्ञापन |
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यह समझौता ज्ञापन दिनांक 24 जुलाई, 2019 को भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो, जिसका मुख्यालय बेल्लारी रोड, एच.ए. फार्म पोस्ट, हेब्बल, बेंगलुरु, कर्नाटक 560024, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि भवन, नई दिल्ली-110001 का एक घटक अनुसंधान संस्थान एक भाग और राष्ट्रीय वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन (एनआईपीएचएम), जिसका मुख्यालय हैदराबाद, तेलंगाना में है जो कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के तहत एक स्वायत्त पार्टी, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के एक घटक, अन्य भाग के (जिन्हें इस एमओयू के प्रयोजन हेतु सामूहिक रूप से पार्टियों के रूप में संदर्भित किया गया है) बीच किया गया है ।
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IV. गांव दत्तक ग्रहण कार्यक्रम |
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1. पौध संरक्षण प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन एवं प्रचार के लिए आईपीएम मॉडल गांव |
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एनआईपीएचएम वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन पर किसानों के ज्ञान को बढ़ाने हेतु पर्यावरण के अनुकूल जैव गहन दृष्टिकोण को लोकप्रिय बनाता है । |
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2. पेरी-शहरी क्षेत्रों में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए एनआईपीएचएम आउटरीच कार्यक्रम |
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पेरी-शहरी क्षेत्रों में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए, एनआईपीएचएम ने रंगारेड्डी जिले के याचाराम (मंडल) में चौदारपल्ली (गांव) चुना है । इस गांव दत्तक ग्रहण कार्यक्रम के तहत, एनआईपीएचएम के अधिकारी क्षेत्र स्तर के बागवानी कर्मचारियों के साथ इस गांव का दौरा किया एवं वनस्पति संरक्षण एवं सहायता के लिए विभिन्न पहलुओं पर पीएचएम के रणनीतियों का प्रदर्शन किया गया । |
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परियोजनाएं |
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पूर्ण परियोजनाएं |
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1. “आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में सब्जी फसलों के प्रमुख कीट पीड़क प्रबंधन के लिए एंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमि पर जांच; अवधि: 2013-2016 |
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परिणाम : एंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमि (ईपीएन) गन्ने की जड़ के ग्रब, गोभी में डायमंड बैक मोथ एवं सब्जियों में अन्य लेपिडोप्टेरान कीट पीड़कों के खिलाफ प्रभावी पाए गए । |
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2. दक्षिणी भारतीय राज्यों में कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र में चयनित रेडुविड परभक्षी का बड़े पैमाने पर उत्पादन (डीएसटी-एसईआरबी फास्ट ट्रैक यंग साइंटिस्ट स्कीम) |
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परिणाम : आईपीएम में जैव नियंत्रण एजेंटों के रूप में रेड्यूविड परभक्षी का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर सकते हैं: रसायनों पर एकमात्र निर्भरता को कम करना हासिल किया गया था, पारिस्थितिक प्रतिक्रिया (प्रतिरोध, पुनरुत्थान, पुनरावृत्ति, वर्धित माइक्रोबियल गिरावट, व्यापक जीवन की हानि आदि) और इस तरह स्थायी कृषि को बढ़ावा देना, कृषक समुदाय के बीच इन रेड्यूविड परभक्षी के जैव नियंत्रण के बारे में जागरूकता पैदा की, क्षेत्र कार्यक्रम हेतु प्रयोगशाला के रूप में रेड्यूविड परभक्षी उत्पादन इकाई की स्थापना की है । |
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3. तेलंगाना राज्य में सूत्रकृमि की समस्याएं एवं प्रबंधन |
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परिणाम : हालांकि, संरक्षित खेती में परिणाम बहुत जल्दी एवं उत्साहजनक होता है। कई पॉली हाउस एवं हैदराबाद के आसपास अमरूद उत्पादकों को एनआईपीएचएम द्वारा सुझाए गए सूत्रकृमि नियंत्रण उपायों को अपनाया गया है और सफलतापूर्वक संचालित किया गया हैं । |
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4. अरंडी में स्पोडोप्टेरा लिटुरा के जैविक प्रबंधन के लिए एंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमि का उपयोग |
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परिणाम : स्पोडोप्टेरा लिटुरा (एफ.) एक सर्वदेशीय पीड़क है जो विभिन्न आर्थिक फसलों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है । एंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमि (ईपीएन) ने साबित कर दिया है कि अन्य परीक्षण किए गए आइसोलेट्स की तुलना में एस लिटुरा लार्वा को, लार्वा मृत्यु दर> 90% जोखिम के 48 घंटे के बाद नियंत्रित करने की क्षमता कितनी है । |
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5. जिला पीड़क प्रबंधन योजना - वारंगल जिला, अवधि-3 वर्ष |
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परिणाम : वरंगल ग्रामीण एवं वरंगल शहरी जिलों में जिला पीड़क प्रबंधन कार्यक्रम के कार्यान्वयन से किसानों को कृषि के अच्छी पद्धतियों के बारे में अधिक जागरूक होने में मदद मिलती है । चूंकि परियोजना का कार्यान्वयन एक समग्र प्रयास था जिसमें मैनेज एवं एनआईपीएचएम द्वारा अधिकांश विस्तार विधियों और आउटरीच गतिविधियों को शामिल किया गया है, जिले में पीड़क एवं रोग प्रबंधन रणनीतियों को अपनाने के मामले में गहन गतिविधियां की गई है । पीड़कों एवं रोगों को नियंत्रित करने की रासायनिक पद्धति का उपयोग करने की पूर्ववर्ती प्रथा ने पीड़क और रोग नियंत्रण के जैविक, कल्चर और भौतिक तरीकों को शामिल करते हुए एकीकृत पीड़क प्रबंधन प्रथाओं (आईपीएम) की समग्र पद्धति का नेतृत्व किया है । |
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6. रासायनिक उर्वरक एवं पीड़कनाशी के अंधाधुंध उपयोग के प्रभाव पर अध्ययन, अवधि: 3 वर्ष |
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परिणाम : 6 फसलों में विभिन्न पीड़कों, प्राकृतिक शत्रुओं एवं उनकी परस्पर क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। एनआईपीएचएम नोडल एजेंसी के रूप में और 7 कृषि विश्वविद्यालयों एवं 1 बागवानी विश्वविद्यालय ने अध्ययन में भाग लिया । सामान्य तौर पर, जैविक क्षेत्र में प्राकृतिक शत्रुओं की जनसंख्या अधिक है । रोग की घटनाएं ज्यादातर मौसमी थीं और केंद्र से केंद्र में भिन्न है । पैदावार में विभिन्न स्थानों पर विविधता, विभिन्न उर्वरकों की खुराक और मिट्टी के स्वास्थ्य की स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है । प्राथमिक पीड़कों के स्थान पर द्वितीय पीड़कों के प्रतिस्थापन के इतिहास से पता चला है कि कुछ द्वितीयक पीड़क प्रमुख पीड़क का दर्जा प्राप्त कर रहे हैं । रसायनों ने चावल के बीपीएच एवं मिर्च में घुन जैसे पीड़को के पुनरुत्थान को प्रेरित किया है । रासायनिक उर्वरकों/पीड़कनाशियों के बढ़े हुए और अंधाधुंध उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में कमी, माइक्रोबियल जनसंख्या और मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आई है । अजैविक उर्वरकों एवं पीड़कनाशियों को बदलने और फसलों के उत्पादन की लागत को कम करने के लिए जैविक और आईपीएम विधियों का अभ्यास एक आशाजनक रणनीति हो सकती है । |
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चालू परियोजनाएं |
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1. आनुवंशिक एवं जीनोमिक दृष्टिकोण का उपयोग करके चना के जड़ घाव सूत्रकृमि के प्रतिरोध तंत्र को समझना |
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चने के जर्मप्लाज्म स्क्रीनिंग के लिए जड़ घाव सूत्रकृमि (प्राटिलेंचस थॉर्नी) प्राप्त करने के लिए किसान की खेती से प्राप्त मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण किया गया। हमें प्रयोगों के लिए सूत्रकृमि की आवश्यक प्रजातियां नहीं मिलीं, उसी पर जेएनकेवीवी जबलपुर एमपी/टीएनएयू कोयंबटूर के अन्य सहयोगियों के साथ चर्चा की गई और चने की फसलों में जड़ घाव सूत्रकृमि से पीड़ित मिट्टी के नमूने एकत्र कर कार्यालय की अनुमति से तकनीकी सहायक (नेमैटोलॉजी) को भेजने की योजना बनाई गई । |
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2. फसल पीड़कों (आईसीएआर-एआईसीआरपी-बीसी)-एनआईपीएचएम, हैदराबाद (स्वयंसेवक केंद्र) के जैविक नियंत्रण पर एआईसीआरपी |
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i. मक्का फॉल आर्मी वर्म (स्पोडोप्टेरा फ्रूगिपरडा) के प्रबंधन हेतु नोमुराएरिलेई (मेटाराइजियमरिलेई) एनआईपीएचएम एमआरएफ-1 स्ट्रेन उत्पादन के लिए एनआईपीएचएम श्वेत मीडिया का मूल्यांकन। |
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ii.मक्का पारिस्थितिकी तंत्र के प्राकृतिक शत्रुओं की जैव विविधता |
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3. तमिलनाडु सिंचित कृषि आधुनिकीकरण कार्यक्रम (टीएन-आईएएमपी) के तहत आईपीएम मॉडल गांव |
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दिनांक 17 मार्च, 2020 को एनआईपीएचएम एवं कृषि विभाग, तमिलनाडु ने टीएनआईएमपी योजना के तहत 'मॉडल आईपीएम गांव' पर परियोजना शुरू करने हेतु एक समझौता ज्ञापन किया है, जिसका उद्देश्य 20 आईपीएम गांवों में सभी लाभार्थी किसानों को तकनीकी सहायता प्रदान करना है । तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में लागत प्रभावी टिकाऊ जैव-नियंत्रण एजेंटों की उत्पादन इकाइयों की स्थापना हेतु लोअर पलार उप बेसिन, जो किसानों को उत्पादन एवं गुणवत्ता रखरखाव में अच्छी प्रथाओं की समझने में प्रशिक्षित करने के लिए, मातृ कल्चर एवं मीडिया को शुरू में संस्था के मौजूदा मानदंडों के आधार पर प्रदान करने के लिए, तमिलनाडु में मानक उत्पादन प्रोटोकॉल मैनुअल तैयार करने हेतु 'ऑन-फार्म उत्पादन' पर जैव नियंत्रण' करना है । |
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